सन्नाटे को समझ भी नहीं पाई शिवसेना जेएनयू छात्र संघ : नहीं किया जाएगा मांगों से समझौता (सुरेश वमा) जनादेश के साथ बयान भाजपा के खिलाफ आ जाते तो पवार ने ऐसा इसलिए किया कि अपने जनता को दिए अपने वादे विश्वासघात यह कुछ जम नहीं थे लेकिन भाजपा ने अपनी मर्यादा प्रदेश को एक स्थिर सरकार दे भूल पाती ? और क्या कांग्रेस वीर रहा क्योंकि जनता ने तो नहीं तोड़ी और बस यही कहा कि सकें। कांग्रेस ने भी भरोसा कर सावरकर को भारत रत्न दिए जाने भाजपा-शिवसेना गठबंधन और प्रदेश को एक स्थिर सरकार सिर्फ लिया और शिवसेना के साथ कामन की बात स्वीकार लेती? यह सभी एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन को वोट हम ही दे सकते हैं। बस उन्हें मिनिमम प्रोग्राम पर चर्चा शुरू हो सवाल बेहद अहम हैं लेकिन अभी दिए थे। ऐसे में अगर उद्धव ठाकरे जरूरत थी ४० विधायकों की। गई। कामन मिनिमम प्रोग्राम के जो सवाल सबसे ज्यादा जरूरी है मुख्यमंत्री बन जाते तो क्या यह एक तरफ शिवसेना, एनसीपी तहत तीनों दलों के बीच एक फार्मूला वह ये हैं कि क्या एनसीपी टूट गई जनादेश का अपमान नहीं होता। और कांग्रेस का भरोसा जीतने में भी तय हो गया और आपसी सहमति ? जैसे ही महाराष्ट्र में अजीत पवार इतना ही नहीं कांग्रेस के खिलाफ जुटी थी और बाला साहेब को दिया भी बन गई कि उद्धव ठाकरे ही के उपमुख्यमंत्री पद की शपथ लेने चुनावों में बड़ी-बड़ी बातें करने वाली हुआ वादा पूरा करने में। शिवसेना मुख्यमंत्री बनेंगे। लेकिन भारतीय की खबर आई वैसे ही कांग्रेस नेता क्या शिवसेना पूर्णता अपने जनता चाहती थी कि एक शिवसैनिक ही राजनीति में सबसे बड़ा उलटफेर थोड़ा भ्रमित हो गए। अभिषेक मनु _ को दिए अपने वादे भूल पाती ? प्रदेश का मुखिया बने लेकिन हो गया और देवेंद्र फडणवीस ने सिंघवी ने ट्विटर पर लिखा कि महाराष्ट्र विधा नसभा चुनाव के एनसीपी और कांग्रेस ने कहा कि मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली और महाराष्ट्र के बारे में पढ़कर हैरान नतीजे २४ अक्टूबर को घोषित होने हम उद्धव ठाकरे के नाम पर अपनी उपमुख्यमंत्री शरद पवार के भतीजे हूं। पहले लगा कि यह फर्जी खबर के करीब एक महीने बाद प्रदेश को सहमति जता सकते हैं किसी और अजीत पवार बन गए। जिसके बाद है। निजी तौर पर बोल रहा हूं कि उसका मुखिया मिल गया है। यह के नाम पर नहीं। ऐसे में बैठकों का कांग्रेस ने इसे जनादेश के साथ तीनों पार्टियों की बातचीत तीन दिन मुखिया वही है जिसे प्रदेश की दौर शुरु हुआ और तय भी हो गया विश्वासघात बताया। से ज्यादा नहीं चलनी चाहिए थी। जनता ने चुना था, बस फर्क इतना कि एनसीपी और कांग्रेस सरकार जनादेश के साथ विश्वासघात यह बहुत लंबी चली। मौका दिया ानमंत्री है कि जनता ने भाजपा और शिवसेना बनाने में शिवसेना की मदद करेगी। यह कुछ जम नहीं रहा क्योंकि गया तो फायदा उठाने वालों ने इसे गठबंधन को स्पष्ट बहुमत दिया था शरद पवार की रग-रग से वाकिफ जनता ने तो भाजपा-शिवसेना तुरंत लपक लिया। लेकिन सत्ता के लोभ में शिवसेना कांग्रेस का मानना था कि एनसीपी गठबंधन और एनसीपी-कांग्रेस गठ लेकिन सिंघवी साहब यह भूल _ ने भाजपा का साथ छोड़ दिया उसे एक बार फिर से धोखा दे बंधन को वोट दिए थे। ऐसे में अगर गए कि पार्टी के वरिष्ठ नेता ही और नई राह तलाशने की कोशिशों सकती है क्योंकि राष्ट्रपति शासन उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बन जाते तो शिवसेना के साथ सरकार बनाने में जुट गई और यहां भाजपा ने लागू होने से पहले जब समर्थन क्या यह जनादेश का अपमान नहीं के पक्ष में नहीं थे। वो तो विधायकों चुप्पी साध ली। वाली चिट्ठी राज्यपाल को सौंपनी होता। इतना ही नहीं कांग्रेस के द्वारा सरकार बनाए जाने की बात महीने भर चले सियासी ड्रामे में थी तो एनसीपी ने थोड़ा और समय खिलाफ चुनावों में बड़ी-बड़ी बातें कही जाने के बाद आलानेताओं ने रोजाना शिवसेना की तरफ से एकाद मांगा। एनसीपी नेताओं की मानें करने वाली क्या शिवसेना पूर्णता इस ओर विचार किया। इस बीच सिंघवी ने अजीत पवार पर तो तंज कस दिया और कहा कि पवार जी तुस्सी ग्रेट हो। अगर यही सही है तो आश्चर्यजनक है। अभी यकीन नहीं है। तो क्या सिंघवी साहब भूल गए कि अजीत पवार भी उसी परिवार का खून हैं जिसे आप लोगों ने पार्टी से निष्का सित किया था। अजीत पवार उपमुख्यमंत्री बन गए लेकिन क्या इस बारे में शरद पवार को कोई जानकारी नहीं थी। यह कहना थोड़ा अजीब लग रहा है। क्योंकि शीतकालीन सत्र की शुरुआत के पहले दिन ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बातों-बातों में एनसीपी की तारीफ कर दी और फिर बाद में शरद पवार ने संसद भवन में ही प्रध ानमंत्री मोदी से मुलाकात की थी। हालांकि इस मुलाकात को किसानों की समस्याओं पर आधारित बताई गई थी। फिर क्या था कांग्रेस ने भी सवाल खड़ा कर दिया कि अगर किसानों के ही मुद्दे पर था तो हमें भी साथ ले चलते। वैसे राजनीति और क्रिकेट में कुछ भी मुमकिन है। ऐसा नितिन गडकरी ने कहा था और गडकरी के पवार परिवार के साथ रिश्ते कैसे हैं यह किसी से भी नहीं छिपा है। हालांकि पवार साहब ने उस पूरे गेम से खुद को अलग करते हुए बयान भी दे दिया और कहा कि महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए भाजपा को समर्थन देने का अजित पवार का फैसला उन का व्यक्तिगत निर्णय है। यह एन सीपी का फैसला नहीं है। हम यह स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि हम इस फैसले का समर्थन नहीं करते।
पवार के पावरगेम में फंस गए "शरद", सन्नाटे को समझ भी नहीं पाई शिवसेना